क्या है “जनसंख्या नियंत्रण कानून” 2001, 2018, 2019

जनसंख्या नीति से तात्पर्य उस सरकारी नीति से है जिसके अनुसार देश की सरकार जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण रखने अथवा यथावत बनाए रखने को प्रोत्साहित करती है| जनसंख्या नीति के संबंध में विशद, अध्ययन एवं विश्लेषण करने के पूर्व जनसंख्या नीति का आशय जानना एवं उसे परिभाषित करना अति आवश्यक है, जो निम्नलिखित है

  1. Myrdal A:  के शब्दों में जनसंख्या नीति एक प्रकार की सामाजिक नीति से कम नहीं है| यदि व्यवहारिक समाजशास्त्र प्रहरी की भूमिका अदा ना करें तो जनसंख्या नीति अविवेक पूर्ण रूप से तंग हो जाएगी तथा वह निदान ओं का उपहास होगा| एक जनसंख्या कार्यक्रम अनिवार्य सामाजिक जीवन के ताने बाने से गुना होना चाहिए| सामाजिक परिवर्तन से इसमें परिवर्तन आना चाहिए| जनसंख्या संकट के विवेकपूर्ण समाधान के लिए हमें समस्त सामाजिक उद्देश्यों व कार्यक्रमों पर निर्भर होना पड़ेगा|
  2. चंद्रशेखर (Chandrashekhar S) के अनुसार जनसंख्या नीति राष्ट्रीय सरकार द्वारा देश की जनसंख्या आकार को संगठन में किसी सरकारी कानून या निर्देश के द्वारा परिवर्तन लाने का जान बूझकर किया गया  प्रयत्न है|

भारत में जनसंख्या वृद्धि होने से समस्याएंजनसंख्या नियंत्रण कानून 2019

जनसंख्या  वृद्धि अधिक अथवा कम होने से देश के कई संसाधनों पर आधारित होती है|दुर्भाग्य वंश विश्व में जनसंख्या व संसाधनों के वितरण प्रारूप में पर्याप्त असमानताएं पाई जाती है| विकसित देशों में जनसंख्या हुई थी एक अभिशाप है, जबकि विकसित देशों में इसके विपरीत होगा| वर्ष 1914 एवं 1944 के मध्य जर्मनी, इटली एवं जापान में जनसंख्या वृद्धि वरदान रही| इन देशों में यह यदि एक महिला 10 या 10 से अधिक बच्चों को जन्म देती है तो उस महिला को मदर हीरोइन का पद प्रदान कर सम्मानित किया जाता है, किंतु भारत में जनसंख्या वृद्धि केवल परिवार के ही नहीं अपितु समाज एवं राष्ट्र के लिए एक समस्या का रूप धारण कर ले रही है|  भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक आदि समस्याओं को बढ़ावा दे दिया है:-

  1. निरंतर निर्धनता (Prepectual Poverty):  जनसंख्या वृद्धि अथवा जनसंख्या विस्फोट के कारण निर्धनता निरंतर बढ़ती जा रही है स्पष्ट है कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रति घटती जनसंख्या वृद्धि की गति अपेक्षा निर्णय जनसंख्या का अतिरिक्त भार प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित कर देता है| परिणाम स्वरूप निर्धनता का प्रादुर्भाव हो जाता है एक श्रमिक झुग्गी में रह रहे रहा है वह अपनी पत्नी तथा प्रथम बच्चे को रहने की सुविधा नहीं देता है वह बच्चे को जन्म देता को जन्म देता है यह सत्य है कि जनता के और कई परिणाम हो सकते किंतु जनसंख्या विस्फोट में सबसे महान है|
  2. स्वास्थ्य में गिरावट (Decline Health): इस बढ़ती जनसंख्या का कुप्रभाव चिकित्सा जैसी जनसेवा पर बहुत अधिक पड़ता है| अधिक जनसंख्या प्रदूषण एवं बीमारियों को जन्म देती है| कई चलाती हैं जो मनुष्य के जीवन को समाप्त कर देती हैं| गंदी बस्तियां स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं यदि बच्चे कुछ रोगों से पीड़ित हो रहे हैं और उनके माता-पिता दवाइयों देने से असमर्थ है तो माता पिता को मानसिक तनाव हो सकता है|
  3. कृषि भूमि का आवंटन (Distribution of Agriculture Land):  जनसंख्या में वृद्धि होगी, कृषि भूमि का सभी बच्चों में समान रूप से आवंटन किया जाएगा| दो या वंशावल के, मनुष्य अनाथ हो जाएगा उदाहरण के रूप में एक कृषकके पास 10 एकड़ भूमि का स्वामी है, और उसके 5 पुत्र हैं| तो अपने पुत्रों को दो 2 एकड़ जमीन बांट देगा| अब यदि इन व्यक्तियों के चाचा पुत्र जन्म लेते हैं तो इनके बड़े होने पर केवल प्रत्येक के हिस्से में आधा एकड़ ही मिलेगा| इस प्रकार भूमि का आवंटन इन पुरुषों की आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करेगा|
  4. वैवाहिक विसर्जन (Martial Disintegration):  जनसंख्या वैवाहिक स्थिरता को भी प्रभावित करती है| अधिक बच्चों का लालन-पालन दंपति मानसिक तनाव दे सकता है| इस कारण से पति पत्नी के मध्य झगड़ा विकराल धारण करने लगता है अतः में वैवाहिक विसर्जन हो जाता है|
  5. नगरीकरण की समस्या (Problem in Urbanization):  तीव्र जनसंख्या का प्रभावनगरों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है| ग्रामीण जनसंख्या तेजी से नगरों की ओर पलायन कर रही है, जिससे नगरों का आकार तेजी से बढ़ रहा है| नगरीकरण के बढ़ते चरण के कारण नगर विभिन्न समस्याओं से ग्रसित हो जाते हैं|सर्वाधिक समस्या रहने के आवास की है|
  6. जीवन स्तर में गिरावट (Fall in Living Standard)
  7. सामाजिक पृथक्करण (Social Disintegration)

भारत की जनसंख्या नीति (2000/ 2001)

स्वतंत्रता के उपरांत प्रथम पंचवर्षीय योजना काल (1951-56) में जनसंख्या में कमी करने के लिए जनसंख्या नीति निर्धारित की गई थी| द्वितीय पंचवर्षीय योजना काल (1956-61) में जन्म दर कम करने के लिए सक्रिय कार्यक्रम बनाने पर बल दिया था|

पंचवर्षीय योजना काल (1974-79) में परिवार नियोजन को आवश्यक राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में सम्मिलित किया और अप्रैल 1976 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की गई इसका मुख्य उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि करना था| इसके उपरांत जनसंख्या वृद्धि को सबसे प्रमुख समस्या मानते हुए छोटे परिवार का प्रोत्साहन देने के उद्देश्य राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की घोषणा की| इस नीति की घोषणा केंद्र सरकार ने 15 फरवरी 2000 को समस्त भारत के समक्ष प्रस्तुत किया| इस नई नीति की प्रमुख संस्तुति या निम्नलिखित है:

  1. सन 2026 तक देश के संसद एवं राज्य विधानसभाओं में 2001 के  जनगणना को ही आधार मानकर जनप्रतिनिधित्व की जाएगी|
  2. बाल विवाह निरोधक अधिनियम को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा| विवाह की आयु लड़कों की न्यूनतम 21 वर्ष तथा लड़कियों की आयु 18 वर्ष कर दी जाएगी| साथ ही प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण तकनीकी निरोधक अधिनियम को कड़ाई के साथ लागू किया जाएगा|
  3. प्रति दंपति दो बच्चों को ही छोटा परिवार माना है| केंद्र सरकार उन पंचायतों एवं जनपद परीक्षकों को पुरस्कृत करेगा जो अपने क्षेत्र के लोगों को छोटा परिवार अपनाने के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं|
  4. बुनियादी शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बनाया जाएगा| मृत्यु एवं विवाह के पंजीकरण करवाना अनिवार्य है|
  5. गरीब दंपतियों को छोटा परिवार रखने पर तथा 2 बच्चों के बाद बंध्याकरण (Sterlization) करा लेने पर ₹5000 की स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल किया जाएगा|
  6. यदि गरीब दंपत्ति को बच्चों को ही जन्म देता है तो सरकार उन्हें ₹500 देगी ताकि वे बच्चों की देखभाल कर सकें|
  7. गर्भपात योजना को प्रभावी बनाया जाएगा| यदि वे दो बच्चों को जन्म देने के उपरांत बंध्याकरण करा लेते हैं तो उनको पुरस्कृत किया जाएगा|
  8. ग्रामीण क्षेत्रों में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए उदार शर्तों पर ऋण तथा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी|
  9. यदि राज्य जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण रखते हैं तो केंद्र उनको आर्थिक सहायता प्रदान करेगी, अन्यथा आर्थिक सहायता में कटौती कर दी जाएगी|
  10. यदि स्वयंसेवी संस्थाएं परिवार नियोजन कार्यक्रम सफल बनाने में सहयोग प्रदान करते हैं तो सरकार उनको भी प्रोत्साहित करेगी|

भारत की जनसंख्या नीति को भलीभांति क्रियान्वित किया जाएगा| प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग (National Population Commission) का गठन किया गया है इस आयोग की सदस्य केंद्रीय मंत्री एवं मुख्यमंत्री होंगे|

भारत की जनसंख्या नीति एवं परिवार नियोजन

जनसंख्या कि विस्फोटक वृद्धि के कारण खाद्य पदार्थ की मांग निरंतर बढ़ रही है| इस कारण भारत को एक समस्या का समाधान सामना करना पड़ रहा है| यह निर्विवाद है कि जनसंख्या वृद्धि दर से मानव जीवन की आर्थिक सामाजिक विकास के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है| अतः भारत सरकार ने देश की आर्थिक प्रगति को ध्यान में रखकर, समय उपयोग प्रारूप प्रस्तुत| खाद्य आपूर्ति, भैरव बेरोजगार, प्रति व्यक्ति आय, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं, आवास जीवन स्तर आदि तथ्यों के साथ ही सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से की जनसंख्या नीति को भी अपनाया है|

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